Ajmer aur Hasya | अजमेर और हास्य
हाई स्कूल के पाठ्यक्रम में बेढब बनारसी की व्यंग्य-रचना “बनारसी-एक्का” पढी. जिसमें उन्होंने बनारसी एक्के (तांगा) की खूबियों के साथ 2 बनारस (काशी, वाराणसी) की बहुत सी बातों की खासियतें भी बताई थी.
इस मामलें में अजमेर भी तीन के अंक का धनी है. यह भौगोलिक रूप से तिकोना बसा शहर तीन ओर से पहाडों से घिरा हुआ हैं. यहां तीन झीलें हैं. यही पर मुख्यरूप से तीन धर्मावलंबियों के पूजा स्थल हैं. अजमेर में आनासागर के किनारे बाराहदरी में खामेखां के तीन दरवाजें भी है जिनके बनाने का आशय
आजतक कोई नही समझ पाया हैं.
अजमेर में मकानों, दुकानों पर लगे साईन बोर्ड भी काफी दिलचस्प हैं. यहां के सबसे पुराने बाजार का नाम नया बाजार है और जहां घी देखने को भी नही मिलता उसे घीमंडी कहते है. कहने का तात्पर्य यह है कि यहां जगह जगह हास्य बिखरा हुआ है.
एक बात और, पहले पी डब्ल्यूडी, फिर पश्चिम रेलवे और फिर अंत में पीएचईडी राजस्थान (जलदाय विभाग) एवं सेवा निवृति के बाद दिल्ली, पूने, जहां भी रहने का अवसर मिला, सबको यही बताता आया हूं कि में अजमेर का रहने वाला हूं. इसका एक कारण यह भी है कि यहां अजमेर में अकसर नाम के पहले शरीफ शब्द लगता है जैसे “अजमेर शरीफ,” “दरगाह शरीफ” आदि इसका लाभ मुझें मिल जाय और लोग मेरे नाम के आगे भी शरीफ शब्द लगादे. मुझें किशोरावस्था से ही लिखने-पढने का शौक रहा. पहली हास्य-व्यंग्य रचना
अग्रवाल हाई स्कूल की वार्षिक पत्रिका, 1956, में छपी. इसके बाद सन 1967 में अजमेर से प्रकाशित दैनिक नवज्योति में “नौकरी की महिमा” तथा 1972 में सरिता पत्रिका में “अधिनस्थ कर्मचारी संघ की मांगें” व्यंग्य लेख प्रकाशित हुए. पहली पुस्तक आपबीती-जगबीती डायमंड प्रकाशन दिल्ली से सन 2009 में प्रकाशित हुई. अब यह दूसरी किताब अजमेर और हास्य पाठकों की सेवा में प्रस्तुत हैं.